“सायुज्य” नारियों की दशा, नर वर्ग का तथाकथित नराभास और उत्कृष्टता का द्वन्द्व है। दूसरी ओर सुलगती समिधा का धुन्ध, नारी सत्ता के बाद भी उसी का दमन कुछ विशेष अकुलाहट है। यह खण्डकाव्य “सायुज्य” स्त्री-पुरुष के मध्य व्याप्त असमानता की खाई को पाटने के प्रयास पर आधारित है। स्त्री-पुरुष के मध्य सायुज्य (समरूपता) स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयास है। प्रस्तुत खण्डकाव्य में नारी पर हो रहे अत्याचार एवं अन्याय से पुरुष को अवगत कराते हुए उसको समझाने और उसमें सुधार कराते हुए उसे बन्द कराने का प्रयास किया गया है, वहीं नारी को भी इस बात से अवगत कराया गया है कि कहाँ-कहाँ यह अपने वसूलों व आदर्शों से गिरी हैं उसका वह पुनरुत्थान करें।यह काव्य दाम्पत्तिक जीवन का मधुरिम चैतन्य स्वभाव है। जीवन की अवस्था का सहयोगी है। विसंगतियों को दूर कर पुरुषार्थ की सिद्धि में सहायक होकर हर क्षण मधुरता से भर देगा। इस खण्डकाव्य में यह प्रयास किया गया है कि नारी पर हो रहे अन्याय बन्द हों और इन्हें जीवन के पाँचो क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक में समान भागीदारी प्राप्त हो तथा नारी को भी पुरुष की तरह सम्मानपूर्वक जीने का सामाजिक अवसर प्राप्त हो। न कोई ऊँच हो और न कोई नीच। नारी और नर के मघ्य परस्पर सायुज्य हो और दोनों अधिकार सम्पन्न हों। दोनो इस प्रकार समरूप (एकाकार) हों, जैसे पयरूप।
POETRY / General
Sayujya: Khand Kavya
₹170.00
By: Triloki Nath Maurya
ISBN: 9788119368297
Category: POETRY / General
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