आई’ का मिलना मेरे लिए मात्र कोई विवाहोपरांत घटित परिणति नहीं थी ना ही कोई पूर्वनिर्धारित संयोग। यह एक पराभौतिक प्रारब्ध था जो ईश्वर द्वारा दो महान और पवित्र आत्माओं को एक रिश्ते में बांधने, कुछ अलौकिक प्रेम के क्षण साथ में गुजारने और अपने ऋणानुबंधों को चुकाने हेतु नियत किया गया था। ये आत्माएं थी एक मेरी ‘माँ’ और दूजी ‘आई’। सत्रह वर्षों की इस दीर्घकालिक संबद्धता में शायद ही किसी की ओर से कोई पूर्वाग्रह, गिला-शिकवा अथवा शिकायती भाव का अवरोध उत्पन्न हुआ हो। वे दोनों दो परिवारों के परिमार्जन, परिशोधन, परिसीमन और परिचर्या हेतु ही इस धरा पर आई थी। दो विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और संवेदनाओं की व्यवहारिक धुरी बनकर। ‘आई’ इसका आधार थी तो ‘माँ’ परिधि। ‘आई’ का उदात्त दृष्टिकोण, अद्वैत श्रद्धा भाव और स्नेहिल सदाशयता मुझे अमृत स्नान करा जाती थी। वो सचमुच में ‘विमल’ थी। मन से भी, मष्तिष्क से भी, हृदय से भी और आत्मा से भी। वो हमारे भीतर ‘विमलता’ का बीजारोपण कर गई है जो पुष्पित, पल्लवित होकर हम सभी की मति को पवित्रतम करेगा। ‘आई’ जैसा अन्य कौन होगा ? एक थी ‘माँ’ और एक माँ सी ‘आई’! __ डॉ.कारुण्य
BIOGRAPHY & AUTOBIOGRAPHY / General
Ek Thi Aai
₹160.00
By: Dr. Karu Kalamohan Jamada
ISBN: 9788119368983
Category: BIOGRAPHY & AUTOBIOGRAPHY / General
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