Anjali: Kishoravastha ke Manosamajik Vikas mein Shiksha aur Samanvay

199.00

By: Sanju Chouhan

ISBN: 9789366658025

Pages:114

Category: EDUCATION / General

Delivery Time: 7-9 Days

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किशोरावस्था के सम्बन्ध में यह परम्परागत विश्वास रहा है कि, किशोरावस्था विकास की क्रांतिक अवस्था है। इस अवस्था में बालक एवं बालिका में आत्म उत्तरदायित्व का स्थापन एवं समझ का विकास बहुत तेजी से होता है। किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ मस्तिष्क का भी विकास तेजी से होता है। किशोरों की प्रकृति वयस्क की तरह स्वतंत्र नजर आने जैसी हो जाती है। किशोर अधिक भावुक, सहज एवं विविध प्रवृत्तियों की ओर जाते नजर आते है, मानसिक रूप से अधिक संवेदनशील हो जाते है। स्वयं को प्रौढ़ जगत से अलग करने के साथ-साथ स्वतंत्र रूप से जीना चाहते है। किशोर बालक-बालिकाऐं माता-पिता के बजाय हम उम्र दोस्तों के साथ उठना-बैठना पसंद करते है। सबसे बड़ी विशेषताऐं जो सामान्य तौर पर देखी गई है, कि किशोर कल्पना लोक में डूबे रहते है और जिससे भी प्रभावित होते है, उसे अपना आदर्श मान लेते है। नाटकों, फिल्मी नायकों की भूमिका करने वालों से सबसे अधिक प्रभावित होते है। समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता को जो सदियों से चली आ रही है, किशोरवय बालक-बालिकाऐं सामाजिक जागृति एवं शिक्षा के माध्यम से समाप्त कर सकते है। समाज में किसी स्त्री को पुरूष के समान ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त है समाज की उन्नति एवं प्रगति के लिए पुरूषों के समान ही स्त्रियांे का सहयोग भी अत्याधिक आवश्यक है। स्त्रियों में चेतना पैदा करने के लिए तथा घर एवं समाज में अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए स्त्रियों को शिक्षित करना आवश्यक हैं। इस हेतु लेखक के विचार है कि, बालिकाओं की विवाह आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी जानी चाहिए। ताकि बालिकाएँ उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ उनमें पूर्णतः शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकास होकर आत्मनिर्भर बन सकें।

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