इस धरती पर अनेक युद्ध दो पक्षों या देशों के बीच लड़े गये । लेकिन इन में से किसी ने मानव स्वास्थ्य विज्ञान के मानकों की अनदेखी नहीं की और न किसी ने इसकी कीमत पर जंग लड़ा । इंग्लैंड की रहनुमाइ में यूरोपियन संयुक्त देशों की सेना तथा चीन के बीच दो जंग उन्नीसवीं सदी में हुए । इन दोनों जंगों का मकसद था चीन से यूरोपियन मित्र देशों के लिए चीन की जमीन पर अफीम बेंचने के लिए खुली छुट हासिल करना । मित्र देश जंग जीत गये तथा अफीम बेंचने की खुली छुट उन्हें मिल गयी । वे बर्षों तक मानव स्वास्थ्य विज्ञान के मानकों की धज्जियाँ उड़ाते हुए तथा मानवीय नैतिक मूल्यों का सौदा करते हुए चीन की जमीन पर बेधड़क अफीम बेंचकर अपार धन कमाते रहे । इंग्लैंड एवं उसके मित्र देशों के तस्कर तथा ब्यापारी अफीम के उत्पादन तथा निर्यात का संचालन छोटानागपुर के पठार – जिसमें बर्तमान विहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, बंगाल तथा उड़ीसा के भूभाग शामिल हैं – से करते थे । इस क्षेत्र में वे अफीम की फसल की नुमाइशी खेती कराते थे । जुताई बुआई तथा कटाइ से लेकर कच्चे माल का उत्पादन एवं कच्चे माल से बाजार में बिकने वाले अन्तिम उत्पाद का प्रक्रमण भी इसी क्षेत्र में करते थे। प्रक्रमित माल को वे चीन, पूर्बी एशिया तथा दुनिया के अन्य हिस्सों में भेजने के लिए कलकत्ता पोर्ट पर लाते थे । वहाँ से माल हांगकांग पहुँचता था तथा उसके बाद खासकर चीन की मुख्य भूमि और दुनिया के अन्य हिस्सों में बितरित होता था । सस्ते मजदूर, अनुकूलित जलवायु एवं प्राकृतिक संसाधनों के कारण अफीम के कच्चे माल की गुणवत्ता भारत के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा काफी अच्छी थी तथा ब्यापारियों का मुनाफा अन्तर अधिक था ।इसके कारण अफीम तस्कर इस को अधिक तरजीह देते थे । इसके अलावा यह क्षेत्र कोयला तथा धातु अयस्कों से भरा हुआ था । औद्योगिक विकास के लिए इनका दोहन और निष्कर्षण काफी जरूरी था । लेकिन यहाँ के मूलवासियों के सहयोग के बिना इनका बेलगाम दोहन संभव नहीं था । इस पहलु को ध्यान में रखते हुए आदिवासियों के तुष्टीकरण के लिए अंग्रेज सरकार ने 1908 में सी एन टी एक्ट को लागू किया तथा यूरोपियन अफीम तस्करों ने पत्थरगढ़ी जैसी खतरनाक अवधारणा को विकसित किया ।
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Opium Yudh Evam Jharkhand
₹320.00
By: Shambhu Prasad Singh
ISBN: 9788119368013
Category: HISTORY / Asia / General
Delivery Time: 7-9 Days
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