संरचनात्मक दृष्टि से ‘पंचकोशीय यौगिक स्वप्रबन्धन‘ नामक यह पुस्तक पंचकोश एवं शरीरत्रय पर आधारिक स्वयं अथवा जीवन प्रबंधन की भारतीय अवधारणा को पुष्ट करती है। जिसमें प्रबंधन को परिभाषित करते हुए प्रबंधन की प्रकृति, प्रकार, घटक, आयाम, सिद्धान्त एवं सीमाओं को वर्णित किया गया है। स्वप्रबंधन की यौगिक संकल्पना के मुख्य पाँच चरण- शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं आत्मा हैं। जिन्हें यौगिक शब्दावली में पंचकोश कहा जाता है, जो स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर के अन्तर्गत आते हैं। इस पुस्तक में पंचकोश आधारित स्वप्रबन्धन की अवधारणा में स्वप्रबन्धन के बाधक तत्व (मूल प्रवृत्तियों में असमायोजन, शरीर, प्राण, नाड़ी एवं अन्तः करण की अशुद्धि, असंयमन, आसक्ति, अनियमित जीवन शैली) एवं सहायक तत्वों (समर्पण, चित्त शुद्धि, ओंकार जप, इन्द्रिय निग्रह, यौगिक जीवन शैली) का वर्णन किया गया है। वस्तुतः पंचकोशों की पुष्टि में आने वाले व्यवधानों एवं अवरोधकों का निराकरण कर समस्त कोशों की पुष्टि स्वप्रबन्धन है। इस पुस्तक का मुख्य प्रयास मनुष्य के बाह्य एवं आन्तरिक जीवन में समुचित प्रबन्धन की व्यवहारिक दिशा प्रदान करना है। जिसके लिए यौगिक ग्रंथों में जीवन प्रबन्धन के निहितार्थ सूत्रों को व्यवहारिक जीवन में अनुपालन हेतु योग की दृष्टि से विवेचित किया गया है।
SELF-HELP / Spiritual
Panchkoshiy Yougik Swaprabandhan
₹299.00
By: Dr. Akhilesh Kumar Vishwakarma
ISBN: 9789366655338
Language: Hindi
Pages: 148
Format: Paperback
Category: SELF-HELP / Spiritual
Delivery Time: 7-9 Days
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