Badhata Chal Manzil Ki Oor

199.00

By: Prof. Sukhnandan Singh

ISBN: 9789366655024

Pages: 78

Category: POETRY / General

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जब से होश संभाला प्रकृति के आंचल में जीवन के रहस्य को अनावृत करने में मश्गूल। इसके साथ स्वयं को जानने, जीवन की अनसुलझी पहेली को सुलझाने की कवायद चलती रही है। यह सौभाग्य रहा कि बचपन से घर-परिवार का माहौल इसके अनुकूल रहा तथा पढ़ाई के दौरान कई साधु-संतों एवं आध्यात्मिक महापुरुषों के सत्संग-सान्निध्य का लाभ मिलता रहा। इनके स्वाध्याय-सत्संग की फलश्रुति यह रही कि दुनियाँ को बेहतर देखने का जो भाव बचपन से प्रबल था, उससे जुड़ी तमाम भ्राँतियाँ समय के साथ दूर होती गयी। इस सानन्त जीवन में अनन्त को धारण करने, निम्न प्रकृति को रुपाँतरित करने तथा समस्याओं से भरे संसार में समाधान का हिस्सा बनकर जीने का भाव पुष्ट होता गया। इसी प्रक्रिया में अंदर के संघर्ष, रोमाँच, उपलब्धियों, हताशा-निराशा, द्वन्द, छटपटाहट, आशा, उत्साह आदि की अभिव्यक्ति हैं 33 कविताओं का यह संकलन है बढ़ता चल मंजिल की ओर…। साथ ही प्रकृति की गोद में विताए जीवन के कुछ सबसे रोमाँचक पलों की दास्ताँ भी उभरते जीवन दर्शन के रुप में यहाँ अभिव्यक्त है।

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